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मन री बात - मारवाड़ी कविता | Poem In Marwadi

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एक मारवाडी कवि ने अपने मन की इच्छा को कवि ने सुंदर शब्दो के समागम में पिरोया है,कवि का नाम ज्ञात नहीं है कवि ने अपने मन की बात को मारवाड़ी कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर ईश्वर से कुछ चीजें मांगी है। हाथी दीज्ये घोड़ा दीज्यै, गधा गधेड़ी मत दीज्यै सुगरां री संगत दे दीज्यै, नशा नशेड़ी मत दीज्यै। घर दीज्यै घरवाळी दीज्यै, खींचाताणीं मत दीज्यै जूणं बळद री दे दीज्ये, तेली री घाणीं मत दीज्यै। काजळ दीज्यै, टीकी दीज्यै, पोडर वोडर मत दीज्यै पतली नार पदमणीं दीज्यै, तूं बुलडोजर मत दीज्यै। टाबर दीज्यै, टींगर दीज्यै, बगनां बोगा मत दीज्यै जोगो एक देय दीज्यै, पणं दो नांजोगा मत दीज्यै। भारत री मुद्रा दै दीज्यै, डालर वालर मत दीज्यै कामेतणं घर वाली दीज्यै, ब्यूटी पालर मत दीज्यै। कैंसर वैंसर मत दीज्यै, तूं दिल का दौरा दे दीज्यै जीणों दौरो धिक ज्यावेला, मरणां सौरा दे दीज्यै। नेता और मिनिस्टर दीज्यै, भ्रष्टाचारी मत दीज्यै भारत मां री सेवा दीज्यै, तूं गद्दारी मत दीज्यै। भागवत री भगती दीज्यै, रामायण गीता दीज्यै नर में तूं नारायण दीज्यै, नारी...