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क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का प्रेरक प्रसंग

महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी को लेकर एक वाक्या व्हाट्सएप्प पर पढ़ने को मिला। जब काकोरी काण्ड को लेकर लखनऊ की एक अदालत में मुकदमा चल रहा था।उसी कोर्ट में एक वकील ने अभियुक्तों को "मुल्जिमान" की जगह "मुलाजिम" शब्द बोल दिया। फिर क्या था पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी रहे लेखक और शायर, उन्होंने तपाक से उन पर ये चुटीली फब्ती कसी..... मुलाजिम हमको मत कहिये बड़ा अफ़सोस होता है.... अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं... पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से..... कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं....  वन्देमातरम्..........✍ keywords:प्रेरक प्रसंग, Hindi Motivational, Motivational Story, Inspirational In Hindi, Inspirational Incidents, Inspirational story,रामप्रसाद बिस्मिल  प्रेरक प्रसंग, 

प्रेरक प्रसंग रामकृष्ण परमहंस - झूठा प्रसाद

Ramakrishna Paramahamsa Inspirational Incidents in Hindi रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर में बीस रुपये प्रति माह के वेतन पर पुजारी की नौकरी मिली.उस समय बीस रूपये का वेतन पुजारी के लिए पर्याप्त होता था.रामकृष्ण परमहंस को पूजा करते कुछ ही दिन बीते थे कि मंदिर कमेटी के पास उनकी कई शिकायतें पहुँच गयी .भक्तों ने मदिर कमेटी को रामकृष्ण परमहंस के पूजा के तरीके को विचित्र बताया . रामकृष्ण परमहंस पर आरोप लगा कि वो प्रसाद को चख कर फिर भगवान को भोग लगाते हैं फूलों को भी पहले सूंघते हैं फिर भगवान पर चढाते हैं . पूजा के इस ढंग पर कमेटी के सदस्यों को बहुत आश्चर्य हुआ ,उन्होंने  रामकृष्ण परमहंस को बुलाया और पुछा - क्या यह सच है कि तुम फूल सूंघ कर देवता पर चढ़ाते हो? भगवान को भोग लगाने से पहले खुद अपना भोग लगा लेते हो?   रामकृष्ण परमहंस ने सहज भाव से जवाब दिया- मैं बिना सूंघे भगवान पर फूल क्यों चढ़ाऊं? पहले देख लेता हूं कि उस फूल से कुछ सुगंध भी आ रही है या नहीं? दुसरे प्रश्न के जवाब में रामकृष्ण बोले-मैं अपना भोग तो नहीं लगाता पर मुझे अपनी मां की याद है वे कोई भी चीज बनाती थ...