पंचतंत्र की कहानी-ढोल और सियार
एक बार जंगल के निकट दो राजाओं के बीच युद्ध हुवा.एक राजा के युद्ध जीतने के बाद दोनों की सेनाएं अपने अपने नगरों की और लौट गयी ,लेकिन सेना का एक ढोल वंहा छूट गया जो लुढकता हुवा एक सूखे पेड़ के पास जाकर टिक गया .हवा चलने पार सूखी टहनियां ढोल से टकरा जाती और ढोल बजने लगता . उस क्षेत्र में एक सियार घूमता था वो उस ढोल की आवाज सुनकर भयभीत हो गया .उसने पहले ऐसी आवाज कभी नहीं सुनी थी .वह सोचने लगा ये कैसा जानवर हैं जो बोलता हैं ढमाढम.एक दिन सियार झाड़ी के पीछे छुपकर ढोल पर नजर रखे था ,तभी पेड़ से गिलहरी कूदकर ढोल पर उतरी .हल्की सी ढम की आवाज भी हुई, गिलहरी ढोल पर बैठी दाना कुतरती रही . इससे सियार का हौसला बढ़ा .वह ढोल तक पहुंचा ,ढोल का उसे कंही सिर नजर नहीं आया और ना ही पैर .तभी टहनियां हवा से झूलकर ढोल से टकराई .ढम की आवाज हुई और सियार उछलकर पीछे जा गिरा . सियार उठने की कोशिश करते हुवे बोला यह तो बाहर का खोल हैं ,जीव इसके अंदर रहता हैं ,जिसकी आवाज़ इतनी मोटी हैं वो खुद भी मोटा ताजा होगा .सियार अपनी मांद में जाकर बोला ओ सियारी बाहर निकल आज तगड़ा शिकार हाथ लगा हैं .दोनों चाँद निकलने पर ढोल के पास पह...