कश्मीरी शैव सिद्धांत क्या है?

कश्मीरी शैव सिद्धांत, जिसे त्रिक या प्रत्यभिज्ञा सिद्धांत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के शैव धारा का एक महत्वपूर्ण और अनूठा स्कूल है। 

यह सिद्धांत कश्मीर क्षेत्र में विकसित हुआ था और इसकी जड़ें 8वीं से 9वीं शताब्दी में हैं।

इस सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. चैतन्य या आत्म-चेतना: कश्मीरी शैव सिद्धांत के अनुसार, पूरा ब्रह्मांड चेतना से निर्मित है, जिसे शिव कहा जाता है। इस चेतना को सर्वव्यापी, अनंत और निरंतर रूप से सृजनशील माना जाता है।

2. शक्ति या ऊर्जा: शिव की शक्ति, जिसे शक्ति कहा जाता है, ब्रह्मांड की गतिशीलता और विविधता का कारण है। शिव और शक्ति का यह संयोजन सृष्टि का आधार है।

3. अद्वैत दर्शन: यह सिद्धांत अद्वैत की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें व्यक्ति की आत्मा और ब्रह्मांडीय चेतना (शिव) के बीच कोई भेद नहीं माना जाता।

4. स्वतंत्रता और विकल्प: इसमें यह भी मान्यता है कि आत्मा के पास स्वतंत्रता है और उसे अपनी दिव्यता का आभास करने के लिए विभिन्न योगिक और तांत्रिक प्रथाओं का अनुसरण करना चाहिए।

5.अनुभव और ज्ञान: यह सिद्धांत अनुभव पर जोर देता है और मानता है कि सच्चा ज्ञान आंतरिक अनुभव और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त होता है।

कश्मीरी शैव दर्शन कई महत्वपूर्ण ग्रंथों जैसे शिव सूत्र, स्पंद कारिका और विज्ञान भैरव तंत्र में वर्णित है। इस दर्शन ने न केवल भारतीय तत्वमीमांसा बल्कि विश्व दर्शन में भी गहरा प्रभाव डाला है।
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