कवि गंग रचनावली-Kavi Gang Rachanawali

Best In Hindi पर इस पोस्ट में हम आपके लिए लायें हैं कवि गंग या गंग कवि अंग्रेजी में Kavi Gang के नाम से विख्यात अकबर के दरबारी गंगाधर की कवितायेँ और दोहे । इन दोहों का संकलन इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों,पुस्तकों और व्यक्तियों से किया गया हैं । हमारा उद्देश्य कवि गंग के बारें में उत्कृष्ट और तथ्यपरक जानकारी देना हैं ।

कवि गंग का पूरा नाम गंगाधर था, इनका जीवन काल 1538 से 1625 तक माना जाता हैं। इनके जन्म स्थान को लेकर ये मत हैं कि कवि गंग का उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के एकनार गाँव के निवासी थे। इनकी जाति ब्राहमण या ब्रहमभट्ट मानी गयी हैं ।

Kavi Gang - कवि गंग या गंग कवि
Kavi Gang 



अकबर के साथ साथ कवि गंग की बीरबल ,रहीम,मानसिंह  और टोडरमल से अच्छी मित्रता थी । बादशाह अकबर उन्हें एक वाक्य देते थे जिस पर कवि गंग अपनी रचना प्रस्तुत करते थे ,जिसमें कई बार अकबर का उपहास उड़ाते थे ।

बताया जाता हैं कि कवि गंग की स्पष्टवादिता के कारण अकबर के बेटे मुगल बादशाह जहाँगीर ने हाथी से कुचलवा कर उन्हें मौत के घाट उतरवा दिया था । कवि गंग ने मरते समय कायर जहाँगीर जो अपनी बेगम नूरजंहा को गद्दी सौंपकर अय्याशी और अत्याचार में डूबा था से कहा -

कबहुँ न भडुआ रन चढ़े, कबहुँ न बाजी बंब।
सकल सभाहि प्रनाम करि, बिदा होत कवि गंग

कवि गंग की रचनाओं को अलंकार और शब्दों की विचित्रता के लिए बेहद पसंद किया जाता हैं । जैसे नीति के दोहों के बीच 'कहे कबीर सुनो भई साधो' का प्रचलन है, वैसे ही कवित्त और सवैयों के बीच 'कहे कवि गंग' अथवा 'गंग कहै सुन शाह अकबर ' की प्रसिद्धि है ।

निर्भीक उक्तियों के लिए कवि गंग अद्वितीय माने जाते हैं। भक्ति कालीन हिंदी कवियों में कवि गंग का स्थान  अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। उनके कवित्त शताब्दियों पश्चात आज भी जन-कंठोें में स्थायी आसन जमाये हुए हैं।

अकबर अपने दरबार के कवियों का बहुत सम्मान करता था और उनकी आलोचना का बुरा नहीं मानता था ,अकबर को सच्चाई सुनने की आदत थी , अकबर के दरबार के बाहर तुलसीदास और दरबार में कवि गंग उस समय के सबसे अच्छे सुकवि माने जाते थे । भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार'

अकबर कवि गंग को सिर्फ एक वाक्य या शब्द देता था जिस पर कवि गंग तुरंत काव्य रचना सुना देते थे । साथ ही अकबर को कई जगह अपमानित भी करते थे । एक बानगी देखिये ।

रति बिन राज रति बिन काज
रति बिन छाजत छत्र न टीकौ
रति बिन मात रति बिन तात
रति बिन होत न जोग जति कौ
रति बिन साधू रति बिन संत
रति मानस लागत फीकौ
कवि गंग कहै सुण शाह मूरख
नर एक रति बिन एक रति कौ

कवि गंग की मशहूर रचनाये 'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली मानी गयी हैं ,उनकी रचनाओं को शब्दों का सारल्य के साथ साथ वैचित्र्य, अलंकारों का प्रयोग और जीवन की व्याहारिकता अत्यन्त रसमय एवं अद्भुत बना देते हैं। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है।

प्रस्तुत हैं कवि गंग की कुछ रचनाएँ :-

आजकल के भौतिक जीवन में हम सब आर्थिक समस्या से घिरे रहते हैं , जिसके पास पैसा हैं उसी की आजकल सब जगह पूछ होती हैं पर कवि गंग ने अपने विवेक से उस काल में भी अपनी कविता में इसका उल्लेख कर दिया था ।
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माता कहे मेरो पूत सपूत बहिन कहे मेरो सुन्दर भैया।
बाप कहे मेरे कुल को है दीपक लोक लाज मेरी के है रखैया।
नारि कहे मेरे प्रानपती हैं उनकी मैं लेऊँ निसदिन ही बलैया।
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर गाँठ में जिनकी है सफेद रुपैया॥
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व्यक्ति की प्रतिभा और योग्यता पर कवि गंग का एक सवैया ।

तारों के तेज में चंद्र छिपै नहिं, सूर्य छिपै नहिं बादल छाये।
चंचल नारि के नैन छिपें नहिं, प्रीत छिपै नहिं पीठ दिखाये।
रण चढ्यो  रजपूत छिपै नहिं, दाता छिपै नहिं याचक आये।
कवि 'गंग' कहें सुन शाह अकबर कर्म छिपै न भभूत लगाये॥

बुरे कर्मों पर कवि गंग कहते हैं :-

दिन छुपे तथवार घटे ओर सूर्य छुपते घेर्ण को छायो
गजराज छुपत हे सिंह को देखत चन्द्र छुपत अमावस आयो
पाप छुपे हरी नाम को जापत कुल छुपे हे कपूत को जायो
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कर्म न छुपेगो छुपो छुपायो
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  देनहार कोउ और है, देत रहत दिन-रैन

एक बार रहीम ने कवि गंग के दो छंदों से खुश होकर कवि गंग को 36 लाख रूपये की भेंट दी ,भेंट देते समय रहीम ने अपनी आँखें नीची कर रखी थी तो कवि गंग ने कहा -
सीखे कहाँ नवाब जू, ऐसी दैनी दैन।
ज्यों-ज्यों कर ऊँचौं कियौं, त्यों-त्यों नीचे नैन॥
रहीम जो कि खानखाना के नाम से प्रसिद्ध हैं ने उसी अंदाज में जवाब दिया -
देनहार कोउ और है, देत रहत दिन-रैन।
लोग भरम हम पै करें, तासों नीचे नैन॥
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संतो की महिमा पर कवि गंग :-

तात मिले पुनि मात मिले,
सुत भ्रात मिले युवती सुखदायी,
राज मिले गज बाज मिले,
सब साज मिले मनवांछित पाई,
लोक मिले परलोक मिले,
विधि लोक मिले वैकुन्ठ जाई,
सुंदर  और मिले सब ही सुख,
संत समागम दुर्लभ भाई।
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मित्रता पर कवि गंग :-

गंग तरंग प्रवाह चले और कूप को नीर पीओ न पीओ,
अबे हृदे रघुनाथ बसे तो और को नाम लिओ न लिओ,
कर्म संजोग सुपात्र मिले तो कुपात्र को दान दिओ न दिओ,
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर एक मुरख मित्र किओ न किओ।
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बुराई पर कवि गंग की पंक्तिया: -

एक बुरो प्रेम को पंथ , बुरो जंगल में बासो
बुरो नारी से नेह बुरो , बुरो मूरख से हाँसो
बुरो सूम की सेव , बुरो भगिनी घर भाई
बुरी नारी कुलक्षनी  , सास घर बुरो जमाई
बुरो ठनठन पाल है, बुरो सुरन में हँसनों
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर सबते बुरो माँगनो
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अंग भस्मी लगावत शंकर के तब

भगवान शंकर और माता पार्वती सहित संपूर्ण शिव परिवार का वर्णन कवि गंग ने इस प्रकार किया हैं :-
अंग भस्मी लगावत शंकर के तब
अहि लोचन बीच परी झर के
अहि फुंकार लगी शशि के तब
अमृत बूँद परी झर के
सजीव भई मृगराज त्वचा जब
मृगराज-त्वचा हुंकार उठी
सुरभि सूत भागे डर बां। । । । करके
कवी "गंग" कहे सुन शाह अकबर
गौरी  हंसी मुख यूँ करके।

अर्थात माता पार्वती शंकर भगवान के मस्तक पर भभूत लगा रही थी ,तो थोडा सा भभूत झड़कर शंकर जी के वक्ष स्थल से लिपटे सर्प की आँखों में पड़ा । आँखों में भभूत गिरने से सर्प फुफकारा तो उससे शंकर मस्तक पर लगा चन्द्रमा कांपा ,चन्द्रमा के कांपने से अमृत की दो बूँद शिव के आसन मृगराज सिंह के चर्म पे गिरी ।
अमृत की बूंद से सिंह जीवित हो दहाडा तो शिव का वाहन नंदी बैल डर गया और रंभा कर बां । । । । करके भागने लगा। यह सब देख मान पार्वती को हंसी आयी कि महादेव का वाहन उनके वाहन ( माँ दुर्गा का वाहन सिंह ) से डर कर भाग रहा हैं । अपनी हंसी को छुपाने के लिए उन्होंने मुंह फेर लिया ।
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जाति स्वभाव पर कवि गंग :-

जाट क्या जाणे रित भाट की,
भैंस  क्या जाणे खेत सगे को, ।
सो साधू की शँगत की तो मुर्ख क्या जाणे ऊपदेश, 
अतीत प्रीत गिरी तो भील क्या जाणे पाप लगेगो,
कहे कवि  गँग सुनो शाह अकबर  तो गधा क्या जाणे नीर गँगा को।

इसी प्रकार कवि गंग ने कहा हैं 

पावक को जलबिंदु निवार्ण है , सूरज तप को छत्तर कियो हैं ,
व्याधि को वैध ,तुरंग को चाबुक , चौपगे को वारव दंड दियो हैं ,
हस्ति महामद को अंकुश हैं , भूत पिशाच को मंतर कियो हैं
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर सब दोखन को औषध कियो हैं ,
पर स्वभाव को औषध नहीं कियो हैं ।
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गर्ज पर कवि गंग:- 

गर्ज ही अर्जुन हिज्र भये अरु गर्ज ही गोविन्द धेन चरावे
गर्ज ही द्रोपदी दासी भई अरु गर्ज ही भीम रसोई पकावे
गर्ज बरी सब लोगन में अरु गर्ज बिना कोई आवे न जावे
कवि  गंग कहे सुन शाह अकबर गर्ज ही बीबी गुलाम रिजावे।
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मनुष्य के विवेक पर कवि गंग :-

बाल से ख्याल बड़े से विरोध अगोचर नार से ना हसिये,
अजा से लाज, अगन से जोर अजाने नीर में ना धसिये,
बेल कू नाथ घोड़े कु लगाम हस्ती को अंकुश से कसिये,
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर क्रूर  से दूर सदा बसिये।

इसी तरह नारी से प्रीत पर गंग कहते हैं :-

चंचल नार की प्रीत न कीजे प्रीत किये दुःख हे भारी
कबु काल परे कबु आन बने नारी की प्रीत हे प्रेम कटारी
लोह को घाव दारू से मिटे अरु दिल को घाव न जाय बिसारी
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर नारी की प्रीत अंगार से भारी।
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भूख पर कवि गंग :-

भूख में राज को तेज सब घट गयो भूख में सिद्ध की बुद्धि हारी
भूख में कामिनी काम सो तज गयी भूख में तज गयो पुरुष नारी
भूख में और व्यवहार  नहीं रहत हे भूख में रहत हैं कन्या कुमारी
कहत कवी गंग नहीं भजन बन पडत हे चार ही वेद से भूख  हैं न्यारी।
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