भुलग्या- राजस्थानी कविता | Marwadi - Rajasthani Poem

भूलग्या- राजस्थानी भाषा की कविता जो बीते जमाने की याद दिलाती है,ये कविता अहसास दिलाती हैं कि आगे बढ़ने की दौड़ मे हम क्या पीछे छोड़ आये हैं।

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भुलग्या- राजस्थानी कविता | Forget Everything -Rajasthani Poem

Marwadi - Rajasthani Poem



कंप्यूटर रो आयो जमानो कलम चलाणीं भूलग्या,

मोबाईल में नंबर रेग्या लोग ठिकाणां भूलग्या।

धोती पगडी पाग भूलग्या मूंछ्यां ऊपर ताव भूलग्या,
शहर आयकर गांव भूलग्या बडेरां रा नांव भूलग्या ।

हेलो केवे हाथ मिलावे रामासामा भूलग्या,
गधा राग में गावणं लाग्या सा रे गा मा भूलग्या ।

बोतल ल्याणीं याद रेयगी दाणां ल्याणां भूलग्या,
होटलां रो चस्को लाग्यो घर रा खाणां भूलग्या ।

बे टिचकारा भूलगी ऐ खंखारा भूलग्या ,
लुगायां पर रोब जमाणां मरद बिचारा भूलग्या ।

जवानी रा जोश मांयनें बुढापा नें भूलग्या ,
हम दो हमारे दो मा बापां ने भूलग्या ।

संस्क्रति नें भूलग्या खुद री भाषा भूलग्या,
लोकगीतां री रागां भूल्या खेल तमाशा भूलग्या ।

घर आयां ने करे वेलकम खम्मा खम्मा भूलग्या,
भजन मंडल्यां भाडा की जागण जम्मा भूलग्या ।

बिना मतलब बात करे नीं रिश्ता नाता भूलग्या,
गाय बेचकर गंडक ल्यावे खुद री जातां भूलग्या ।

कांण कायदा भूलग्या लाज शरम नें भूलग्या,
खाणं पांण पेराणं भूलग्या नेम धरम नें भूलग्या ।

घर री खेती भूलग्या घर रा धीणां भूलग्या,
नुवां नुंवां शौक पालकर सुख सुं जीणां भूलग्या ।

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टिप्पणियाँ

  1. हालै नी भाबज लै चालूं, आलीजै रै देश |
    मान मनुहारां करसी थारी, उण मुरधर रै देश ||

    परणियौ म्हारो घणौ कौडिलो, गीत हेत रा गावै है|
    घरै आयोङै मेहमानां नै, मोत्यां थाळ बधावै है||
    मरू धरा रो वासी हैं बो, म्हां पर हैत लुटावै है|
    रूप सौवणो ज्यांरौ कहिजै, झीणौ- झीणौ सरमावै है||

    हालै नी.............

    कटारी जैङा नैण कहिजै, मूछ्यां घणीं सुहावै है|
    कंलळा- कंवळा हौठां माथै, सूरज लाली बरसावै है||
    कोयल जैङा मीठा बौले, शारद इमरत घौळै है|
    पाबू जैङो रूप निरख नै, चन्दौ भी सरमावै है||

    हालै नी...............................

    मुरधर धर री छटा दैखनै, थूं आपौ खौलेगा|
    मखमल जैङी रैत निरख, थूं बिसराम करण री सौचेला||
    कांई मनुहार करां म्हैं थारी, सगळा ही थांनै पूछैला|
    कैर, सांगरी, काचर,फळियां थूं घणै चाव सूं खावैला||

    हालै नी................

    काळी कळायण घटा छावसी, मदरौ- मदरौ गाजैला|
    पणिहारियां पाणी नै जासी, टाबर रौळ मचावैला||
    भातौ लै भतवारियां जासी, पिव नै जाय जिमावैला|
    दिन आंथ्या खेतां स्यूं आसी, गायां दैख रम्भावैला ||

    हालै नी.............

    रचयिता - बंशीलाल लौहार पल्ली 9672674464 9680636285
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  2. kai mast kavita likhi ha , aaj ra jamana ma fit baith ri ha bilkul , bich bich ma hassi bhi aai or aapni sachai bhi dikhi ; )

    जवाब देंहटाएं

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